BIG Analysis : '4-5 नहीं जीडीपी का 34 फीसदी पहुंच चुका भारत सरकार का घाटा' |

BIG Analysis : ‘4-5 नहीं जीडीपी का 34 फीसदी पहुंच चुका भारत सरकार का घाटा’

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प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरुण कुमार का आकलन

नई दिल्ली /नवप्रदेश। भारत (india) की विकासदर (growth rate) रसातल में पहुंच गई है। भले ही मोदी सरकार या आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन कहते हों कि भारत सरकार का वित्तीय घाटा चार से पांच प्रतिशत के बीच हो, लेकिन वित्तीय घाटा (financial loss) , सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 34 फीसदी पहुंच चुका है। यह कहना है कि जाने-माने अर्थशास्त्री (economist) प्रो. अरुण कुमार (arun kumar) का। उन्होंने कोरोना संंकट व भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर ये बात कही है।

वर्कर्स यूनिटी के डिजिटल प्लेटफॉर्म फेसबुक लाइव में ‘आर्थिक हालात और चुनौतियां’ विषय पर बोलते हुए मशहूर अर्थशास्त्री (economist) अरुण कुमार (arun kumar) ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि कोरोना (corona) काल में लॉकडाउन के चलते उत्पादन पूरी तरह से रुक गया है। सिर्फ जरूरत के सामानों का ही उत्पादन हो पा रहा है। पूरी तरह से उत्पादन रुकने के कारण स्थिति युद्ध समय से भी बदतर है क्योंकि युद्ध के समय में भी उत्पादन पूरी तरह से नहीं रुकता।

2007 से 2009 के बीच आई ग्लोबल मंदी में हालात इतने बुरे नहीं थे, जितने कि अब हैं। सप्लाई और डिमांड भी पूरी तरह से खत्म हो गए हैं। विकासदर (growth rate) रसातल में आ गई है। भारत (india) का वित्तीय घाटा (financial loss) सकल घरेलू उत्पाद का 34 फीसदी हो चुका है।

बेहतर होता कि मजदूर जहां थे वहीं रहते

बकौल कुमार गरीबी और असमान वितरण के चलते लॉकडाउन ने समाज के एक बड़े हिस्से को ज्यादा प्रभावित किया है। शहरों में काम करने गए मजदूर एक छोटे से कमरे में 6-8 मजदूर रहते हैं। सरकार ने सोचा ही नहीं कि लॉकडाउन से इतनी बड़ी संख्या में पलायन होगा। ये सोचना चाहिए था कि लॉकडाउन से काम बंद होने से असंगठित क्षेत्र पर क्या असर होगा? यह सोचना चाहिए था कि फिजिकल डिस्टेंस कैसे होगी जब एक कमरे में 6-8लोग रहते हैं?

आप हाथ धोने की बात कर रहे हैं, उनके पास पीने का पानी नहीं है, वो क्या करेंगे? इसीलिए लॉकडाउन का जितना फायदा मिलना चाहिए था, नहीं मिला। अब पता चल रहा है कि स्थिति कितनी खराब है। 8 मजदूर एक कमरे में चौबीसों घंटे नहीं रह सकते। बेहतर तो यही होता कि वो जहां थे उन्हें वहीं जरूरत का सामान पहुंचाया जाता। स्कूलों और तमाम खाली इमारतों में उनके रहने की व्यवस्था की जाती।

फाइनेंशियल क्षेत्र में संकट से पूरी अर्थव्यवस्था डूब जाती है

प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि फाइनेंशियल क्षेत्र के संकट पर बात करते हुए कहते हैं- जिनका लोन ज़्यादा होगा उनका ब्याज भी ज़्यादा बढ़ेगा। फानेंशियल क्षेत्र में संकट आने से अर्थव्यवस्था डूब जाती है। क्योंकि लोन का भी एक पूरा चेन होता है। एक दूसरे को नहीं देगा तो दूसरा तीसरे और तीसरा चौथे को नहीं दे पाएगा। 2008 में अमेरिका का बड़ा बैंक ‘लीमन ब्रदर्स’ ऐसे ही डूबा था। सरकार ने मोरटोरयम दिया है पर समस्या ये है कि यदि उद्योग रिस्टार्ट करना चाहेंगे तो लोन नहीं मिलेगा। एनपीए में तबदील होने के डर से।

छोटे उद्योग डिफॉल्ट होंगे क्योंकि इनके पास वर्किंग कैपिटल नहीं होता। लॉकडाउन में वो छोटी बचत का इस्तेमाल उपभोग में करेंगे तो लॉकडाउन खत्म होने के बाद उद्योग को दोबारा खड़ा करने के लिए उनके पास वर्किंग कैपिटल नहीं होगा। वर्किंग कैपिटल इन्वेस्टमेंट का हिस्सा है। इसकी पूरी चेन होती है, प्रोडक्शन- वर्कर्स- इनकम- डिमांड- इन्वेस्टमेंट। इस तरह यदि इन्वेस्टमेंट बंद हो जाएगा तो प्रोडक्शन भी बंद हो जाएगा।

जितनी तेज गिरावट उतनी तेज रिकवरी नहीं होगी

भारत की अर्थव्यवस्था मुख्यतौर पर घरेलू बाजार पर निर्भर है। भारतीय अर्थव्यवस्था 95 फीसदी घरेलू बाजार पर और 5फीसदी विदेशी निवेश पर निर्भर करती है। लॉकडाउन की वजह से घरेलू मांग बुरी तरह प्रभावित हुई है और विदेशी निवेश भी नहीं आ रहा है। आने वाले समय में वी शेप रिकवरी नहीं शेप रिकवरी होगी। यानि जितनी तेज गिरावट आर्थिक मोर्चे पर आई है, उतनी तेज रिकवरी नहीं होगी। इससे कम से कम एक साल या उससे अधिक का समय लग सकता है।

200 लाख करोड़ की इकोनॉमी घटकर 130 की रह गई

अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने आगे बताया कि- 200 लाख करोड़ की इकोनॉमी लॉकडाउन में घटकर 130 लाख करोड़ की हो गई है जबकि जीएसटी कलेक्शन करीब 10फीसदी ही हो रहा है। अर्थव्यवस्था में 75 फीसदी की कटौती हुई है और फिलहाल लॉकडाउन के बीच अर्थव्यवस्था 25 फीसदी ही काम कर रही है। ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट सेक्टर सबसे अधिक प्रभावित हैं।

कृषि की हालत सुधारने सरकारी बसों का हो इस्तेमाल

कृषि क्षेत्र के संकट पर बात करते हुए अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं देश की अर्थव्यस्था में खेती का योगदान256 बिलियन डॉलर का है। ऐसे में दो हजार रुपये की मदद पर्याप्त नहीं है क्योंकि निर्यात ठप हो चुका है। शहरी क्षेत्रों में कीमतें बढ़ेंगी क्योंकि मांग बढ़ रही है और ग्रामीण क्षेत्र में कीमतें गिरेंगी क्योंकि किसान अपनी फसल बेच नहीं पाएंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि कठिन लॉकडाउन की स्थिति में गांवों से खाने-पीने की ये चीजें शहरों और दुनिया के किसी भी देश तक कैसे पहुंचेंगी। अगर सप्लाई शुरू नहीं हुई तो खाना बर्बाद हो जाएगा और भारतीय किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। प्रो अरुण कुमार का कहना है कि खाली खड़े पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग गांव की अर्थव्यवस्था संभालने में हो सकता है।

सरकार अपना बजट दोबारा से बनाए

अर्थव्यवस्था ब्रेकडाउन की स्थिति में हैं तो ऐसे में सरकार के लिए अपने खर्चों (जैसे कि अपने कर्मचारिय़ों को सैलरी आदि देने) के निकालने में भी दिक्कत होने वाली है। अंत में प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि सरकार के पास आने वाले समय में कुछ महीनों तक सैलरी देने लायक भी पैसा नहीं होगा। ऐसे में सरकारी कर्मचारियों को सैलरी कट के लिए तैयार रहना होगा। साथ ही बेहतर होगा सरकार अब कोरोनाकाल को देखते हुए अपने बजट को दोबारा से बनाए।


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