अब सीजेआई के दफ्तर में भी लगा सकते हैं आरटीआई क्योंकि....

अब सीजेआई के दफ्तर में भी लगा सकते हैं आरटीआई क्योंकि….

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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय भी आरटीआई कानून के दायरे में

सीजेआई गोगोई समेत पांच जजों की संविधान पीठ ने दी व्यवस्था

नई दिल्ली/(ए.)। देश के मुख्य न्यायाधीश (cji) कार्यालय (office) से जुड़ी जानकारी भी सूचना का अधिकार  कानून (rti act) के जरिए मंगाई जा सकती है। इसके लिए अब सीजेआई दफ्तर में आरटीआई लगाई जा सकेगी।

खुद उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में इस संबंध की व्यवस्था दी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (cji) का दफ्तर (office) आरटीआई कानून (rti act) के दायरे में आता है (comes under purview of) । मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एन वी रमन की संविधान पीठ ने बुधवार को यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत लिया। उल्लेखनीय है कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। और बुधवार केे इस अहम फैसले से पहले वे आयोध्या जमीन विवाद पर ऐतिहासिक फैसला दे चुके हैं।

फैसले में ये कहा संविधान पीठ ने

  • सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि आरटीआई के तहत जवाबदारी से पारदर्शिता और बढ़ेगी।
  • इससे न्यायिक स्वायत्तता, पारदर्शिता मजबूत होगी। संविधान पीठ ने कहा कि इससे मजबूती मिलेगी कि कानून से ऊपर कोई नहीं है।
  •  सीजेआई ऑफिस एक पब्लिक अथॉरिटी है। सभी जज आरटीआई के दायरे में आएंगे।

पर नहीं मांग सकते जजों की संपत्ति का ब्योरा

फैसले पर जानकारी देते हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘पारदर्शिता बनाए रखने केे लिहाज से यह जरूरी था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने जजों की नियुक्ति को सार्वजनिक करने को भी सूचना के अधिकार के तहत माना है। हालांकि जजों द्वारा चीफ जस्टिस के सामने संपत्ति सार्वजनिक किए जाने को आरटीआई कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।’

ये है मामला

दरअसल, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने अपने आदेश में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (सीजेआई) का दफ्तर आरटीआई कानून के दायरे में होगा (comes under the purview of) । सीआईसी केे इस आदेश को दिल्ली होईकोर्ट ने सही ठहराया था। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने 2010 में चुनौती दी थी। जिसकी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगाते हुए मामले को संविधान पीठ को रेफर कर दिया था।

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