गांधी जयंती पर विशेष : गांधी आज ज्यादा प्रासंगिक हैं

गांधी जयंती पर विशेष : गांधी आज ज्यादा प्रासंगिक हैं

2 October Father of the Nation Mahatma Gandhi 150th birth anniversary

mahatma gandhi

  • इस अवसर पर कई सरकारी योजनाओं का आगाज भी होने जा रहा है जिसमें मोदी-2.0 सरकार की ”प्लास्टिक मुक्त भारत” तथा छत्तीसगढ़ राज्य के भूपेश बघेल (cm bhupesh bahgel) सरकार की ”कुपोषण और एनीमिया मुक्ति अभियान  प्रमुख हैं….

समूचा देश 2 अक्टूबर (2 October) को राष्ट्रपिता (Father of the Nation) महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की 150वीं जयंती (150th birth anniversary) मना रहा है। सरकारी तंत्र से लेकर विभिन्न राजनीतिक दल (Political party)और कई संस्थायें (many Institutions) बापू यानि मोहनदास करमचंद गांधी की जयंती पर अनेक कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। इस अवसर पर कई सरकारी योजनाओं का आगाज भी होने जा रहा है जिसमें मोदी-2.0 सरकार की ”प्लास्टिक मुक्त भारत” तथा छत्तीसगढ़ राज्य के भूपेश बघेल (cm bhupesh bahgel) सरकार की ”कुपोषण और एनीमिया मुक्ति अभियान  प्रमुख हैं।

यह स्मरणीय होगा कि गांधी (Mahatma Gandhi ) के ही नेतृत्व में भारत जैसे बड़े अंग्रेजी उपनिवेश का खात्मा हुआ उनके आदर्शों पर चलकर ही आजादी के बाद की साम्प्रदायिक हिंसा की आग बुझाई गयी तथा दुनिया में रंगभेद के खिलाफ अहिंसक संघर्ष की प्रेरणा दी गयी। एकबारगी हम यह कह सकते हैं भारत गांधी के बिना भारत अधूरा है। गांधी को केवल भारत तक ही सीमित नहीं किया जा सकता बल्कि वे अकेले ऐसे सार्वभौमिक और बहुआयामी व्यक्तित्व हैं जिनके सिद्धांतों और विचारों का विश्व समुदाय अनुसरण कर रहा है।

2 October Father of the Nation Mahatma Gandhi 150th birth anniversary
dr sanjay shukla

दरअसल महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi )एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचारधारा है जो युगों-युगों तक अस्तित्व में रहेगा। इसमे रंचमात्र भी संदेह नहीं है कि भारत और विश्व चाहे जितना भी विकसित और आधुनिक हो जाए लेकिन गांधी के विचारों व दर्शन को नकारना लगभग असंभव है। सुचना क्रांति और सोशल मीडिया (social media) के वर्तमान दौर में देश की कुछ ताकतें लगातार इस फिराक में है कि भारत की नयी पीढ़ी के सामने गांधी का अवमूल्यन किया जावे।

अपने इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए ये ताकतें गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताने और गांधी की तस्वीर पर गोलियां दागने से भी नहीं हिचक रहे हैं। देश में सक्रिय कुछ संगठन लगातार भारत के विभाजन और साम्प्रदायिक उदारीकरण के लिए गांधी और नेहरू को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं तब भी देश की बहुतायात युवा आबादी के लिए गांधी ही प्रियपात्र हैं, यह पीढ़ी अब भी गांधी की राह चलना चाहते हैं।

इसका प्रमाण 2011 में गांधीवादी (Mahatma Gandhi) और समाजसेवी नेता अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनलोकपाल विधेयक लागू करने की मांग पर हुए जनआंदोलन तथा 2012 में निर्भया दुष्कर्म मामले पर हुए देशव्यापी आंदोलनों में युवाओं की सक्रिय भूमिका है। इस आंदोलन में देश के युवाओं ने धर्म और जातिवाद के परे जाकर हाथ में तिरंगा थामे मौन सत्याग्रह किया था, युवाओं की गांधीवादी सत्याग्रह ने सत्ता की चूलें हिला दी थी।

इस आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि अब भी गांधीवाद के बरास्ते सत्ता को जायज मांगों के लिए झुकाया जा सकता है।
गांधी भले ही 20वीं सदी में भारत में जन्में दुनिया के सबसे महान व्यक्ति थे परंतु उनके विचारों व दर्शन को काल और स्थान से बांधा नहीं जा सकता, गांधी के विचार और दर्शन आज ज्यादा प्रासंगिक हैं। हालिया दौर में जबकि देश में साम्प्रदायिक और धार्मिक कट्टरता अपने चरम पर है, गौ हत्या के नाम पर भीड़ द्वारा इंसानों की हत्या यानि ”मॉब लिंचिंग” की खबरें आम है।

देश की अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी अपने कठिनतम दौर से गुजर रही है तथा गांव, किसा और खेती खत्म हो रहे हैं, समाज में नैतिक मूल्यों का गिरावट अपनी के पराकाष्ठा पर है तब केवल महात्मा गांधी के विचार और दर्शन ही इन विसंगतियों से निबटने का एकमात्र रास्ता है। हालिया परिस्थितियों में यह कहा जा सकता है कि भले ही गांधी के हाड़-मांस की देह को गोलियों की छलनी से खत्म कर दिया गया हो लेकिन गांधी की विचारधारा आज भी जीवित है तथा समूचे मानव समाज के लिए पथप्रदर्शक बने हुए हैं।

गांधी के सामाजिक व राजनीतिक विचार, सत्य, अहिंसा, स्वराज, सत्याग्रह, अनशन, असहयोग आंदोलन, ग्राम स्वराज, सर्वोदय, खादी, स्वच्छता, अस्पृश्यता, महिला शिक्षा, महिला स्वालंबन ग्रामोद्योग और अन्य सामाजिक चेतना के विषय वर्तमान परिवेश और आज की पीढ़ी के लिए उत्सुकता, शोध व अध्ययन का प्रमुख क्षेत्र है। महात्मा गांधी की देश की शिक्षा व्यवस्था पर राय थी कि शिक्षा से व्यक्ति का निर्माण होता है तथा वह सामाजिक व नैतिक बनता है। उनका यह विचार आज की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल रहा है क्योंकि आज शिक्षा का मकसद महज अच्छी नौकरी पाना है न कि चरित्र निर्माण।

आज के दौर मे पढ़े-लिखे लोगों में अपराधिक और भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है तथा वे नैतिक रूप से पतन की राह पर हैं। गांधी ने शिक्षा पर व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए बुनियादी शिक्षा में पाठ्यक्रम के अंतर्गत आधारभूत शिल्प जैसे कताई-बुनाई, लकड़ी, मिट्टी, चमड़े का काम, कृषि, मछली पालन, फल व सब्जी के बागवानी, हस्तशिल्प, लड़कियों के लिए गृह विज्ञान के शिक्षा सुलभ कराने पर बल दिया था। गांधी बुनियादी शिक्षा का माध्यम हिन्दी और क्षेत्रीय भाषा को बनाने के पक्षधर थे। उनका मानना था कि स्कूली शिक्षा में सामान्य ज्ञान, कला, शारीरिक और नैतिक शिक्षा का अवश्य समावेश हो।

गांधी (Mahatma Gandhi) के बुनियादी शिक्षा के बारे में व्यक्त इन विचारों के आधार पर 1938 में ”नई तालिम” (बुनियादी शिक्षा) के नाम से योजना तैयार की गयी जिसे वर्धा शिक्षा योजना के नाम से जाना जाता है। बुनियादी शिक्षा के संबंध में गांधी के विचार आज की शिक्षा व्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है। महात्मा गांधी स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा प्रमुखता कुदरती या प्राकृतिक चिकित्सा को देते थे और स्वयं इसे आजीवन अपनाते रहे हैं। बकौल गांधी मानव शरीर पंच भौतिक यानि पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्नि का संयोग है तथा इन्हें प्रकृति के द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है।

गांधी शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी बल देते थे उनका सिद्धांत था कि क्रोध, ईष्र्या, लोभ, निंदा का परित्याग, ध्यान व ब्रम्हचर्य का पालन करके मानसिक रूप से स्वस्थ रहा जा सकता है, वहीं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वे पैदल चलने, नियमित दिनचर्या अपनाने और उपवास को बल देते थे। गांधी का महिलाओं के प्रति साकारत्मक दृष्टिकोण था वे महिलाओं को पुरूषों के मुकाबले अधिक मजबूत और सहृदय मानते थे, उनका मानना था कि महिलाओं को ”अबला” पुकारना उनके आंतरिक शक्ति को दुुत्कारने जैसा है। वे महिलाओं के सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक, आर्थिक स्वतंत्रता, समानता और स्वालंबन के पक्षधर थे।

उन्होंने देश के स्वतंत्रता के आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित की थी। वे विधवा पुर्नविवाह तथा दहेजमुक्त विवाह के दृढ़ समर्थक थे। गांधी जी ने भारत में सदियों से व्याप्त जातिवादी तथा रूढि़वादी छुआ-छूत को खत्म करने के लिए अस्पृश्यता निवारण को आजादी की लड़ाई के साथ जोड़ा, इस कार्य को सुचारू ढंग से चलाने के लिए 1932 में हरिजन सेवक संघ की स्थापना की तथा उन्होंने ”भंगी मुक्ति” कार्यक्रम की शुरूआत की जिसका उद्देश्य सफाई कर्मचारियों के लिए वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराना था, गांधी अपना शौचालय खुद साफ करते थे।

अस्पृश्यता निवारण और सामाजिक समता की स्थापना के लिए उनका मानना था कि ”जिनके पुरखों ने छुआ-छूत चलाने का पाप किया उन्हीं की पीढ़ी को प्रायश्चित के रूप में अस्पृश्यता निवारण का कार्य करना चाहिए। नि:संदेह आज की सामाजिक परिस्थिति में गांधी के उपरोक्त दर्शन से देश में सामाजिक समरसता का निर्माण हो सकता है। महात्मा गांधी भारत को लाखों गावों का गणराज्य कहते थे उनका विचार था कि देश की आत्मा गांॅवो में ही वास करती है, उनका मानना था कि गांॅवो के विकास के बिना राष्ट्र का विकास संभव नहीं है।

गांधी ने अपने सपनों के भारत में ग्रामीण विकास के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए ग्राम स्वराज, पंचायती राज, कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गंावों की सफाई व गांव के आरोग्य पर बल दिया था। गांव के दयनीय स्थिति से चिंतित गांधी जी ने ”स्वदेशी अपनाओ विदेशी भगाओ” के जरिए गांवों को खादी निर्माण से जोड़कर ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराते हुए उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा था। महात्मा गांधी का अर्थशास्त्र स्वदेशी, ग्रामीण आत्मनिर्भरता, बड़े उद्योगों के बजाए कुटीर और छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन, उत्पादन में मशीनों के अपेक्षा श्रम के इस्तेमाल पर नीहित था।

स्वतंत्रता आंदोलन के समय कांग्रेस को धनश्याम दास बिड़ला जैसे अनेक उद्योगपतियों तथा व्यापारियों के समर्थन के बावजूद गांधी ने कभी भी पूंजीवाद को भारत की जरूरत नहीं माना। महात्मा गांधी हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक सद्भाव व एकता के प्रबल पक्षधर थे, उनका कहना था कि ”साम्प्रदायिकता की समस्या का हल यही है कि हर व्यक्ति अपने धर्म की अच्छी चीजों का पालन करें और दूसरे धर्मों और उनके मानने वालों का उतना ही सम्मान करें जितना वह अपने धर्म का करता है।

वे यह भी मानते थे कि यदि हम एक दूसरे के विचारों को कुचलने का प्रयास करेंगे तो हम आपस में ही लडऩे और मरने लगेंगे। उनका यह भी मत था कि अहिंसा को स्वीकार करने से ही हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित हो सकती है। गांधी की गौहत्या और गौरक्षकों के बारे में भी विचार था कि ”केवल कानून से ही गौवध नहीं रोका जा सकता बल्कि इसे ज्ञान, शिक्षा और गाय के प्रति दयाभाव से ही बंद किया जा सकता है, हिन्दुओं के लिए यह मूर्खतापूर्ण होगा कि गौहत्या कानून मानने के लिए मुसलमानों पर बल प्रयोग करें। जब मुस्लिमों को भरोसा हो जाएगा कि हिन्दु उनके लिए जान भी दे सकते हैं तब वे खुद गौहत्या बंद कर देंगे। उनका कहना था कि कुरान में यह नहीं है कि मुसलमानों को गौ-मांस खाना चाहिए।

धर्म के बारे में गांधी का विचार था कि ”मेरा धर्म सत्य और अहिंसा है, सत्य मेरा भगवान है और अहिंसा उसे पाने का साधन। गांधी पत्रकारिता को एकमात्र ध्येय सेवा मानते थे, उनका मानना था कि अखबारों के पास बड़ी षक्ति है लेकिन जिस प्रकार अनियंत्रित बाढ़ का पानी बस्तियों को डूबो देता है उसी प्रकार अनियंत्रित लेखनीय भी विनाशकारी होती है। प्रेस का नियंत्रण तब लाभकारी हो सकता है जब प्रेस स्वयं इसे लागू करे। गौरतलब है कि महात्मा गांधी स्वयं यंग इंडिया, हरिजन सेवक हरिजन जैसी पत्र-पत्रिकाओं में अपने नियमित विचार लिखते रहे हैं तथा उन्होंने कई साहित्य का लेखन भी किया।

बहरहाल आज के परिवेश में सत्ताधारी और विपक्षीदल दोनों ही अपनी राजनीतिक के लिए गांधी का इस्तेमाल तो करते हैं परंतु उनके पार्टी के नेता और कार्यकर्ता गांधी के आदर्शों व दर्षन पर चलने के लिए राजी नहीं हैं जबकि महती आवष्यकता गांधी के दर्शन को आत्मसात करने की है।

(लेखक, शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, रायपुर में सहायक प्राध्यापक हैं।)
मो.नं.- 94252-13277

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