विश्व आदिवासी दिवस : आदिवासी समुदाय को जल, जंगल और जमीन से जोड़ने की सार्थक पहल

विश्व आदिवासी दिवस : आदिवासी समुदाय को जल, जंगल और जमीन से जोड़ने की सार्थक पहल

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मूलनिवासियों (original inhabitants) को हक दिलाने (get right) और उनकी समस्याओं का समाधान, भाषा, संस्कृति, इतिहास के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations organisation) की महासभा (General Assembly) द्वारा 9 अगस्त 1994 को जेनेवा (Geneva city on 9 August 1994) शहर में विश्व के मूलनिवासी प्रतिनिधियों का ’प्रथम अंतर्राष्ट्रीय मूलनिवासी दिवस’ सम्मेलन आयोजित किया गया।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने व्यापक चर्चा के बाद 21 दिसम्बर 1994 से 20 दिसम्बर 2004 तक ’’प्रथम मूलनिवासी दशक’’ और प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मूल निवासी दिवस (विश्व आदिवासी दिवस) मनाने का फैसला लिया और विश्व के सभी देशों को मनाने के निर्देश दिए। छत्तीसगढ़ में पहली बार राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन गत वर्ष 27 से 29 दिसम्बर तक राजधानी रायपुर में किया गया। मुख्यमंत्री ने हाल में ही नवा रायपुर में आदिवासी संग्राहलय के स्थापना की घोषणा की है। 

श्री भूपेश बघेल की सरकार ने आदिवासी अंचल बस्तर में एक नई पहल करते 40 सालों से लंबित बोधघाट बहुद्देशीय सिंचाई परियोजना के काम को आगे बढ़ाने की कार्यवाही शुरू की है। केन्द्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद इसके सर्वे का काम भी शुरू करा दिया गया है। यह परियोजना बस्तर संभाग में खेती-किसानी और समृद्धि का नया इतिहास लिखेगी। इस परियोजना की लागत 22 हजार 653 करोड़ रूपए है। इससे दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर जिले में 3 लाख 63 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होगी। बस्तर में अब बारूद और बंदूक खेती के बजाए फसल लहलहाएगी। इस परियोजना के माध्यम से 300 मेगा वॉट विद्युत उत्पादन भी किया जाना प्रस्तावित है।

यह परियोजना इन्द्रावती नदी पर प्रस्तावित है, जो गिदम से 10 किलोमीटर और संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बोधघाट बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना के विकास के लिए इन्द्रावती नदी विकास प्राधिकरण का भी गठन किया गया है।  मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा आदिवासी समुदाय को जल, जंगल और जमीन से जोड़े रखने की सार्थक पहल की गई है। बस्तर और सरगुजा में सिंचाई का प्रतिशत काफी कम है।

नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी योजना के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नया जीवन प्रदान किया जा रहा है। इसमें यहां के नालों को रिचार्ज करने का काम किया जा रहा है। जिससे सिंचाई के लिए सतही जल और भूमिगत जल की उपलब्धता बढ़ेगी। राज्य सरकार द्वारा आदिवासी समाज के हित में विश्व आदिवासी दिवस पर सामान्य अवकाश घोषित करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। बस्तर और सरगुजा में कनिष्ठ कर्मचारी चयन बोर्ड का गठन करने की घोषणा से स्थानीय युवाओं को भर्ती में प्राथमिकता मिलेगी।

पांचवीं अनुसूची के जिलों में बस्तर, सरगुजा संभाग और कोरबा जिले में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों पर स्थानीय लोगों की भर्ती के लिए आयु सीमा में तीन वर्ष की छूट दिया गया है। एनएमडीसी के नगरनार प्लांट में गु्रप सी और गु्रप डी की भर्ती परीक्षा दंतेवाड़ा में ही कराने को लेकर एनएमडीसी द्वारा सहमति दी गई है। मुख्यमंत्री ने नक्सल पीड़ित युवा बेरोजगारों को डीएमएफ मद से बीएड की डिग्री पूर्ण होने पर रोजगार प्रदान करने की घोषणा की है। इसी प्रकार भोपालपट्टनम में बांस आधारित कारखाना स्थापित करने की पहल की जा रही है।  

अनुसूचित जनजाति के समग्र विकास के लिए बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण, सरगुजा क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण और मध्य क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण (रायपुर, दुर्ग एवं बिलासपुर संभाग) का गठन किया गया है। इन तीनों प्राधिकरणों में स्थानीय विधायकों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाया गया है। सरकार ने जनजाति सलाहकार परिषद के कामकाज के लिए पृथक सचिवालय की स्थापना का निर्णय लिया है।  मुख्यमंत्री द्वारा जनजाति वर्गाें की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए जाति प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया का सरलीकरण किया गया है।

नई प्रक्रिया के अंतर्गत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छत्तीसगढ़ के स्थानीय निवासियों के परिवार में शिशु के जन्म के समय उसके पिता की जाति के आधार पर शिशु का जाति प्रमाण पत्र भी निर्धारित प्रारूप में सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया जा रहा है। सरकार के इस निर्णय से जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करना अब आसान हो गया है। नक्सल प्रभावित अंचलों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के रहवासियों के विरूद्ध दर्ज प्रकरणों की समीक्षा की जा रही है और इन प्रकरणों की वापसी के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति गठित की गई है।  राज्य के सभी जिलों में 10-10 छात्रावासों एवं आश्रमों को मॉडल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया है।

प्रथम चरण में राज्य के आदिवासी बाहुल्य जिलों में प्राथमिकता से आश्रमों एवं छात्रावासों का उन्नयन कार्य होगा। प्री-मेट्रिक छात्रावास एवं आवासीय विद्यालय सहित आश्रमों में निवासरत विद्यार्थियों की शिष्य वृत्ति दर में 100 रूपए की वृद्धि कर उन्हें अब 900 रूपए के स्थान पर एक हजार रूपए की शिष्य वृत्ति दी जा रही है। राज्य में वर्ष 2019-20 में 16 नवीन एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय प्रारंभ किए जा रहे है। मैट्रिकोत्तर छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थियों को छात्र भोजन सहाय के लिए अक्टूबर 2019 से 500 रूपए के स्थान पर प्रतिमाह 700 रूपए दिए जाने का प्रावधान किया गया है। 

मुख्यमंत्री द्वारा राज्य के बस्तर अंचल के सुदूर पहुंचविहीन क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए खालेमुरवेंड में 100-100 सीटर बालक एवं कन्या तथा दोरनापाल, तोंगपाल एवं गोलापल्ली में 150-150 सीटर पोस्ट मैट्रिक छात्रावास प्रारंभ किए जा रहे है। वर्ष 2019-20 में 61 तथा वर्ष 2020-21 में 100 आश्रम-छात्रावास भवनों के निर्माण को मंजूरी, बजट में 33.75 करोड़ रूपए का प्रावधान रखा गया है। मिनी माता की स्मृति में छत्तीसगढ़ में 11 कन्या छात्रावासों की स्वीकृति दी गई है। 

प्रदेश के दूरस्थ, वनांचल और अंतिम छोर तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधा को लोगों तक पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना 02 अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर शुरू की गई। इस योजना के माध्यम से राज्य के सभी जिलों के हाट बाजारों में मोबाईल, चिकित्सा यूनिट के माध्यम से लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण एवं उपचार की सुविधा नियमित रूप से उपलब्ध कराई जा रही है। बस्तर संभाग में मलेरिया मुक्ति अभियान संचालित किया जा रहा है। इस अभियान के दौरान लोगों को जागरूक करने के साथ ही इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोक्वीन टेबलेट का वितरण भी किया जा रहा है।

एनीमिया और मलेरिया मुक्त बस्तर अभियान के तहत घर-घर जाकर लगभग 14 लाख लोगों की रक्त सैम्पल की जांच की है।  नई सरकार ने अनुसूचित और अनुसूचित जनजाति के किसानों को भरपूर सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कृषि पंपो पर बिजली बिल में पूरी छूट देने का निर्णय लिया। दूरस्थ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थित 462 पुलिस थानों और बेसकैम्पों को सौर ऊर्जा से विद्युतीकृत किया गया है। लोक निर्माण विभाग के माध्यम से संचालित निर्माण कार्यों के द्वारा भी स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल रहा है। इन क्षेत्रों में लघु वनोपज पर आधारित लघु उद्योगों और प्रसंस्करण इकाईयों को प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया गया है। 

राज्य सरकार द्वारा निर्णय लिया गया है कि डीएमएफ की राशि का उपयोग खदान प्रभावित क्षेत्र में लोगों के जीवन में बेहतर परिवर्तन लाने के लिए किया जाएगा। आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण दूर करने के लिए चना वितरण के लिए शासन द्वारा 171 करोड़ रूपए और बस्तर संभाग में प्रति परिवार दो किलो गुड़ वितरण के लिए 50 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है। बस्तर संभाग में कुपोषण दूर करने के लिए बच्चों और महिलाओं को विशेष पोषण आहार के वितरण का काम प्रारंभ हो चुका है। राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना नीति आयोग ने भी की है। 

इसी तरह तेंदूपत्ता संग्रहण की दर ढाई हजार रूपए से बढ़ाकर चार हजार रूपए प्रति मानक बोरा कर दी गई है। यह दर देश में सबसे अधिक है। अब 31 लघु वनोपजों की खरीदी समर्थन मूल्य पर की जा रही है। इनमें राज्य सरकार द्वारा वनवासियों के हित में अहम निर्णय लेते हुए महुआ के निर्धारित समर्थन मूल्य 17 रूपए से बढ़ाकर 30 रूपए प्रति किलोग्राम की गई है। इससे वनवासियों को वनांचलों में स्व-सहायता समूहों के माध्यम से रोजगार देने में तेजी आई है। राज्य में अब तक 112 करोड़ रूपए मूल्य के 4 लाख 75 हजार क्विंटल लघु वनोपजों का संग्रहण हो चुका है। बस्तर में प्रस्तावित स्टील प्लांट नहीं बनने पर लोहंड़ीगुड़ा क्षेत्र के किसानों की अधिगृहित भूमि लौटाने का महत्वपूर्ण निर्णय भी लिया गया है। यहां आदिवासियों को 4200 एकड़ जमीन वापस कर राजस्व अभिलेखों में नाम दर्ज करने की कार्रवाई भी पूर्ण कर ली गई है।

राज्य सरकार ने आदिवासियों के हित में अनेक ऐतिहासिक निर्णय लिए गए हैं, जिनमें वन अधिकार पट्टों के लिए प्रदेश में पूर्व में अमान्य किए गए आवेदनों पर पुनर्विचार कर पट्टे देने का कार्य किया गया है। 4 लाख 22 हजार व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र और 30 हजार 900 सामुदायिक वन अधिकार पत्र वितरित किए गए। व्यक्तिगत वन अधिकार मान्यता के माध्यम से 3.81 लाख हेक्टेयर भूमि और सामुदायिक वन अधिकार पत्रों में 12.37 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि आवंटित की गई।

नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले के लगभग 275 असर्वेक्षित ग्रामों में वर्षों से निवासरत 50 हजार से अधिक लोगों को उनके कब्जे में धारित भूमि का मसाहती खसरा और नक्शा उपलब्ध कराए जाने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय से किसान परिवारों के पास उनके कब्जे की भूमि का शासकीय अभिलेख उपलब्ध हो सकेगा और वे अपनी काबिज भूमि का अंतरण कर सकेंगे। इससे अबूझमाड़ क्षेत्र के अंतर्गत लगभ 10 हजार किसानों को 50 हजार हेक्टेयर भूमि का स्वामित्व प्राप्त होगा। 

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