'केएसके के 20 भूविस्थापित कर्मियों की कंपनी के बाद कोरोना ने बढ़ाई मुसीबत'

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जांजगीर चांपा/नवप्रदेश। कोरोना (corona janjgir champa) वायरस संक्रमण के मद्देनजर पूरे देश में लॉकडाउन है। लेकिन प्रदेश में इस संकट का सर्वाधिक असर केएसके महानदी पॉवर कंपनी लिमिटेड (ksk power company limited) के 20 भूविस्थापित श्रमिक परिवारों  पर पड़ता दिखाई दे रहा है, जिनको कंपनी ने बर्खास्त (employees terminate) कर दिया है।  

हिंद मजदूर सभा (एचएमएस) से संबद्ध छत्तीसगढ़ पॉवर मजदूर संघ की ओर से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक, केएसके महानदी कंपनी लिमिटेट (ksk power company limited)  के 20 भूविस्थापित श्रमिकों को गत वर्ष सितंबर माह में निलंबित किया गया था, और 18 फरवरी 2020 को इन पर झूठे आरोप लगाते इन्हें अवैधानिक तरीके से बर्खास्त (employees terminate) कर दिय गया।

जिसके कारण इन 20 श्रमिकों को आधा वेतन मिल रहा था वो भी अब बंद हो गया है। अब कोरोना (corona janjgir champa) के चलते आलम ये है कि ये मजदूर अपने अधिकार की लड़ाई भी नहीं लड़ पा रहे हैं। इन श्रमिकों को 87 दिन  से चला आ रहा अपना अनिश्चितकालीन धरना प्रशासन के निर्देश पर स्थगित कर देना पड़ा।

अब एचएमएस यूनियन ने मांग की है कि लॉक डाउन में जिस तरह शासन-प्रशासन द्वारा मजदूरों व गरीब परिवारों के भोजन की सुध ली जा रही है उसी प्रकार केएसके कंपनी के उक्त 20 श्रमिक परिवारों की भी सुध ली जाए। संघ की ओर से कहा गया है कि शासन-प्रशासन ने इन श्रमिकों की समस्याओं पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया है।

संघ ने यह चेतावनी भी दी है यदि देश-प्रदेश में पहल से चल रही संकट की घड़ी में यदि इन 20 श्रमिकों के परिवारों का संकट गहरा जाता है तो इसके लिए केएसके प्रबंधन, जिला प्रशासन व श्रम विभाग जम्मेदार होगा अन्यथा इन श्रमिकों की समस्या का प्रशासन, जनप्रतिनिधियों व संघ के पदाधिकारियों की उपस्थिति में त्वरित  निराकरण किया जाए।

बलराम गोस्वामी ने प्लांट के पूरे विवाद को कुछ यूं बयां किया

मजदूरों की जमीन को 1 लाख व रसूखदारों की जमीन को 30 लाख का भाव

एचएमएस यूनिनयन के उपमहामंत्री बलराम गोस्वामी ने बताया कि केएसके महानदी पावर कंपनी ने नरियरा क्षेत्र में 2008 में जमीन खरीदना शुरू किया। प्लांट शुरू से ही विवादित रहा है क्योंकि पहले मजदूरों की जमीन को 1 लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से खरीदना शुरू किया था लेकिन बाद में जमीन 23 लाख रुपए एकड़ तक खरीदी गई। इसके अलावा कुछ प्रभावशाली लोगों की जमीन 30 लाख रुपए एकड़ तक में खरीदी गई। कंपनी ने जो वादे जनसुनवाई के समय किए उनका भी कभी पालन नहीं किया। यहां भूविस्थापितों की संख्या करीब 1800 सौ के आस पास है जो प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं।

साठगांठ से रोगदा बांध का अस्तित्व ही खत्म

गोस्वामी ने बताया कि इस प्लांट का विवादों से हमेशा नाता रहा है इस प्लांट ने नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए रोगदा बांध को प्रारंभकाल ही में पाट दिया जिसका विवाद बहुत दिन तक चला हालांकि बाद में साठगांठ के जरिए रोगदा बांध का अस्तित्व ही खत्म हो गया।

समझौते के बाद करवा दिया विवाद

गोस्वामी के मुताबिक असली विवाद तब शुरू हुआ जब संघ ने मजदूरों को एकजुट करके कंपनी प्रबन्धन से बैठक करके 17 हजार रुपए न्यूनतम वेतन और 1 अनिवार्य प्रमोशन के लिए सहमत कर लिया। लेकिन यूनियन कंपनी प्रबन्धन के कूटरचित योजना को समझ नहीं पाया। कंपनी प्रबन्धन ने समझौते के बाद प्लांट में अपने लोगों से विवाद करवा दिया। जो मजदूर नेता मजदूर हित की लड़ाई अच्छे से लड़ रहे थे उन्हें झूठी रिपोर्ट पेश करके नौकरी से बाहर कर दिया गया। कंपनी ने स्थानीय जिला प्रशासन को बताया कि मजदूर नेताओं ने कंपनी के अधिकारियों को गन पॉइंट पर रख सारे समझौते कराए। जबकि हकीकत ये है कि पुलिस की मौजूदगी में उक्त समझौते हुए।  

17 सितंबर 2019 को प्रबंधन ने प्लांट पर जड़ा ताला

कंपनी प्रबन्धन ने बड़ी प्लानिंग करके 17 सितम्बर 2019 को नाटकीय रूप से प्लांट को तालाबंदी कर दिया जिसके बाद मजदूर संघ ने फिर आवाज उठायी। तत्कालीन श्रम सचिव सुबोध सिंह ने जांजगीर चाम्पा कलेक्टर को पत्र लिखा और कम्पनी प्रबन्धन को कारण बताओ नोटिस जारी किया। तब आनन फानन में कलेक्टर जेपी पाठक के द्वारा 18 सितम्बर 2019 को अतिरिक्त कलेक्टर की अध्यक्षता में कम्पनी प्रबन्धन और यूनियन के बीच कमेटी बना कर बैठक कराई गई। इसमें तय हुआ कि भविष्य में प्लांट में विवाद किसी भी यूनियन के द्वारा नहीं किया जायेगा और सबके सहयोग से शांतिपूर्ण तरीके से प्लांट का संचालन 3 से 5 दिन में कर दिया जाएगा।

25 को प्लांट शुरू हुआ तो मजदूर नेताओं को नहीं दिया प्रवेश

जब 25 सितम्बर 2019 को तालाबंदी समाप्त की गई तो अप्रत्याशित तरीके से मजदूर नेताओ को प्लांट में प्रवेश नहीं दिया गया। जिसके बाद फिर बड़े स्तर पर चरण बद्ध आंदोलन शुरू हो गया इसी दौरान 17 अक्टूबर 2019 को मजदूरों के द्वारा आमरण अनशन शुरू किया गया फिर 18 अक्टूबर 2019 को मध्यरात्रि में सो रहे 67 मजदूरों को उठाकर जेल में डाल दिया गया। 3 मजदूर नेताओं को अगले दिन घर से उठाकर उन्हें भी जेल में डाल दिया। अनशन को लाठी के दम पर प्रशासन ने बन्द करा दिया फिर भी इनकी बहाली नहीं हो सकी। पुनः धरना प्रारम्भ किया गया जो 23 दिसम्बर से लेकर 19 मार्च तक लगातार 87 दिन धरना चला। लेकिन कोरोना संकट के चलते प्रशासन के निर्देश पर इस बंद कर देना पड़ा।

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