CG Education : छग के ऐसे शिक्षक, जिनके कारण दुर्गम गांव में पढ़ते हैं शहरी बच्चे

CG Education : छग के ऐसे शिक्षक, जिनके कारण दुर्गम गांव में पढ़ते हैं शहरी बच्चे

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शुकांत विश्वास/पखांजूर। छत्तीसगढ़ के शिक्षा (cg education) क्षेत्र में एक शिक्षक (teacher) ऐसे है जिन्होंने अपने जुनून से दुर्गम व नक्सल वारदातों के लिहाज से अतिसंवेदनशील गांव को प्रदेश का ‘एजुकेशन विलेज’ (education village) बना दिया है।

इस शिक्षक (teacher) ने कांकेर (kanker) जिले के गोंडाहूर गांव (gondahur village) के शासकीय उच्चतर माध्ययमिक विद्यालय (government school) को ऐसे बदल दिया कि यहां अब शहरी बच्चे भी शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। छत्तीसगढ़ के शिक्षा (cg education) क्षेत्र में अलग स्थान रखने वाले इस शिक्षक का नाम है अरुण कीर्तनिया (arun kirtaniya) ।

कांकेर (kanker) जिले केे कोयलीबेड़ा ब्लॉक के ग्राम गोंडाहूर के शिक्षक अरुण कीर्तनिया प्रदेश केे शिक्षा क्षेत्र में मिसाल कायम कर रहे हैं। अरुण बतौर शिक्षक पखांजूर मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर दुर्गम व नक्सली वारदातों के लिहाज से अतिसंवेदनशील गांव गोंडाहूर के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय (government school) में अपनी सेवा दे रहे हैं।

कभी गांव में पसरा था अशिक्षा का अंधकार

गोंडाहूर वही गांव है, जहां कभी अशिक्षा का अंधकार रहा करता था। लेकिन अरुण कीर्तनिया (arun kirtaniya) की अथक मेहनत, जुनून व समर्पण भाव ने आज इस छोटे से गांव को क्षेत्र के ‘एजुकेशन विलेज’ (education village) के रूप में पहचान दिला दी है।

स्कूल से निकले कई बच्चे बन चुके डॉक्टर, इंजीनियर व साइंटिस्ट

आज इस स्कूल से निकले व अरुण के पढ़ाए कई बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, वैज्ञानिक तथा मल्टीनेशनल कंपनियों के उच्च अधिकारी बन चुके हैं। अरुण के कुछ ऐसे भी शिष्य है, जो सेना में अधिकारी के पद पर हैं। यहीं नहीं क्षेत्र के शहरी इलाकों के बच्चे भी इस गांव में पढऩे आते हैं और यहां किराए के कमरों में रहते हैं।

अरुण की कर्मठता का गांव में कुछ इस तरह असर हुआ कि कुछ साल पहले यहां लोग शिक्षा से कोसों दूर हुआ करते थे वहीं आज हर दूसरे घर का बच्चा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम छू रहा है। अरुण कीर्तनिया के जुनून ने गोंडाहूर शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के साथ-साथ पूरे गांव की भी तस्वीर बदल दी है।

1997 से संभाल रहे हैं स्कूल की जिम्मेदारी

8-12-1997 को अरुण कीर्तनिया को प्रभारी प्रिंसिपल के रूप में स्कूल की कमान सौंपी गई थी। तब गांव में शिक्षा का स्तर और स्कूल की स्थिति दोनों ही अत्यंत दयनीय थे। पर अरुण दोनों को सुधारने की ठान ली जिसका नतीजा ये हुआ कि आज गोंडाहूर स्कूल और गांव दोनों ही बेहतरीन शिक्षा परिणाम के लिए पूरे क्षेत्र में चर्चित है। अरुण गांव के बच्चों और वहाँ के स्थानीय लोगों को बेहतर शिक्षा के प्रति जागरूक किया। और फिर छात्रों को बेहतर से बेहतर शिक्षा पद्धतियां अपनाकर दिन-रात मेहनत कर पढ़ाया और धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लायी।

हर साल बढ़ता जा रहा है मेरिट का ग्राफ

अरुण ने अपने सहयोगी शिक्षकों के साथ मिलकर दिन-रात मेहनत कर छात्रों को पढ़ाई के बेहतर तरीके और मोटिवेशन सिस्टम से जोड़ा और फिर शुरू हुआ मेरिट का ग्राफ जो आज हर शिक्षण सत्र के परिणाम में लगातार ऊपर की और बढ़ता जा रहा है। कक्षा 12वीं में वर्ष 2010 में 90फीसदी से ऊपर में 6 छात्र ,वर्ष-2011 में 6 छात्र तथा वर्ष-2012 में 7 छात्र, वर्ष-2103 में 21 छात्रों को 80 फीसदी से अधिक अंक प्राप्त हुए। वही दूसरी और कक्षा 10 वी. में वर्ष-2011 में विद्युत मंडल ने 92.2 फीसदी तथा वर्ष-2013 में प्रिया कीर्तनीया ने 93 फीसदी अंक प्राप्त कर पुरे जिले में स्कूल का नाम रोशन किया। आज भी यहां हर साल कई छात्र मेरिट लिस्ट में शामिल होते है। वर्ष 2010 में समीर दत्त बनिक ने कक्षा 12 वी. में 95.8 फीसदी अंक प्राप्त कर पुरे प्रदेश में चौथा स्थान हासिल किया था ।

दाखिले के लिए उमड़ पड़ती है भीड़

क्षेत्र में कई बड़े निजी स्कूल हैं जो मुख्यालय में स्थित है। ये स्कूल विभिन्न प्रकार के सुविधाओं से लैस हैं। वावजूद इसके अतिसंवेदनशील क्षेत्र में स्थित यह स्कूल आज पूरे क्षेत्र के लोगों की पहली पसंद बन गया है। शिक्षण सत्र प्रारंभ होने से पूर्व ही यहां पालकों की अपने बच्चों के दाखिले के लिए कतार लग जाती है। छात्रों का चयन छात्रों की गुणवत्ता के आधार पर होता है। शहरी इलाकों में कई निजी बड़े-बड़े स्कूल हैं, लेकिन वहां के भी बच्चे पढ़ाई के लिए इस दुर्गम स्थान पर स्थित स्कूल में आते हैं। बच्चे यहां किराए के मकान में रहकर पढ़ाई करते है।

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी नि:शुल्क

यहां पीएटी-पीएमटी-पीईटी जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छात्रों को नि:शुल्क क्लासेस की सुविधा भी दी जाती है। इस काम के लिए यहां के शिक्षक शिक्षण सत्र समाप्त होने पर मिलने वाली छुट्टियों का इस्तेमाल करते हैं। शिक्षक छुटिटयां बिताने के बजाय बच्चों को पढ़ाते हैं। इन स्पेशल क्लासेस के द्वारा अब तक कई छात्रों का चयन विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में हो चुका है। यहां के छात्र एनआईटी जैसे बड़े शिक्षण संस्थानों में भी अपना परचम लहरा चुके हैं ।

ग्रामीणों को रोजगार भी मिला

इस गांव के कई परिवारों को आज एक शिक्षक के मेहनत के चलते बेहतर रोजगार का विकल्प मिल गया है। दूर-दूर से पढऩे आ रहे बच्चों के लिए किराये का मकान तथा भोजन उपलब्ध कराकर कई परिवार अपना जीवन-यापन कर रहे है। दूर-दूर से बच्चों के आने से यहां कई प्रकार की सुविधा जैसे एसटीडी ,कंप्यूटर सेंटर, कई बड़े दुकान खोले जा रहे हैं। जिससे इस गाँव के स्थानीय लोगों को बेहतर रोजगार मिल रहा है।

विद्यालय की साज-सज्जा देखने दूर-दूर से आते हैं लोग

शिक्षक अरुण कीर्तनिया ने न केवल बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दिया बल्कि स्कूल की साज-सज्जा और उद्यानिकी का भी विशेष ख्याल रखा गया जिसके चलते आज इस स्कूल के उद्यानिकी और साज-सज्जा को देखने लोग दूर-दूर से आते हैं।

बन जाते हैं बच्चों के माता-पिता

शिक्षक अरुण कीर्तनिया अपने छात्रों से बेहद लगाव रखते हैं और पढ़ाई के साथ-साथ उनकी सुविधाओं का भी बखूबी ख्याल रखते हैें। दूर-दूर से पढऩे आये बच्चों के लिए वे माता-पिता बन जाते हैं। बच्चों की हर छोटी-छोटी बात को समझकर बच्चों के परेशानियों का हल भी खुद ही निकालने की कोशिश करते है।

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