दो साल की भर्तियों की जांच हो

दो साल की भर्तियों की जांच हो

नवप्रदेश संवाददाता
कांकेर। सरकार ने गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले गरीब बच्चों के बेहतर शिक्षा के लिए राइट टू एजुकेशन शिक्षा के अधिकार के तहत गरीब बच्चों को इंग्लिश हिंदी की शिक्षा दिलाकर अमीर गरीब के फासले को कम करने का सार्थक प्रयास किया गया है लेकिन गरीबी रेखा कार्ड वाले बच्चों का यह सपना तो पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा है । आरटीई के तहत गरीब बच्चों को दी जाने वाली नि:शुल्क शिक्षा का अधिकांश लाभ अमीर लोग उठा रहे हैं जिससे आरटीई योजना पर सवालिया निशान लग रहा है 29 अप्रैल को दैनिक नवप्रदेश ने गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा का सपना चूर चूर के शीर्षक वाली खबर को बड़े ही प्रमुखता से प्रकशित किया था
खबर के बाद आमजनो ने खबर की जमकर सरहाना करते कहा कि बीते 2 सालों के दाखिले की सूक्ष्मता से जांच किया जाना चाहिए। शिक्षा के आधार के तहत गरीब परिवार के बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश देने की प्रक्रिया ऑनलाइन होने के चक्कर में लटक जाती है शिक्षा का अधिकार लागू होने के बाद प्राइवेट स्कूलों को प्रारंभिक कक्षा की कुल सीट का 25त्न गरीब बच्चों के लिए आरक्षित रखा गया है जिसमें गरीब परिवार के पात्र बच्चों को निशुल्क प्रवेश देना अनिवार्य है इसके अंतर्गत गरीब परिवार के पात्र बच्चों के निवास से 1 किलोमीटर की अवधि में स्थित निजी स्कूलों में गरीब परिवार के पालक उनके लिए आवेदन कर सकते हैं आरटीई प्रवेश की प्रक्रिया 1 मार्च से प्रारंभ की गई थी इसमें पाठकों को ऑनलाइन आवेदन जमा करने के लिए 30 अप्रैल तक समय दिया गया था परंतु निर्धारित समय से कम आवेदन ही आ पाए इसलिए समय में बढ़ोतरी की गई उसके बावजूद गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले बच्चों को शिक्षा के अधिकार के तहत निशुल्क और वह भी निजी स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पाना आरटीई योजना को सवालों के कटघरे में लाकर खडा कर दिया है।
ना गरीबी रेखा का कार्ड 07-08 के सर्वे सूची में नाम, नहीं फिर भी अमीर लोगों के बच्चों का दाखिला कैसे?
बता दे कि अधिकतर गरीब बच्चे जो वास्तविक में इस शिक्षा के लिए उपयुक्त माना जाता है लेकिन पालिका के द्वारा बिना कार्ड बिना सर्वे सूची के प्रसंसा पत्र जारी किया गया है और इस योजना में गरीब परिवार के बच्चों के सपने को तोड़कर नियमों की धज्जियां उड़ाते अमीर लोगो के बच्चे इस योजना का लाभ लेते दिखाई दे रहे है अब सवाल यह उठता हैं कि सरकार के द्वारा गरीबो के लिए चलाई जा रही योजनाओं को पालिका में बैठे अफसर व कर्मचारियों के द्वारा किस प्रकार ठेगा दिखाकर गरीब बच्चों के शिक्षा का सौदा किया जा रहा है इसकी सूक्ष्मता से जांच होगी तो चौकाने वाले खुलासे होने की आशंका जताई जा रही है।

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