संपादकीय : भुखमरी से छुुटकारा कब

संपादकीय : भुखमरी से छुुटकारा कब

India Global Hunger Index Starvation problem plans

India Global Hunger

भारत वैश्विक भूख सूचकांक में 95वें स्थान पे फिसल कर 102 वें स्थान पर आ गया है। गौरतलब है कि वर्ष 2010 में भारत   में 95 वें पायदान पर था। किन्तु अब वह 117 देशों की सूची में 102 वें स्थान पर पहुंच गया है। जाहिर है भुखमरी की समस्या से निपटने में हमारी सरकार असफल हो रही है।

जबकि सरकार की तमाम योजनाएं गरीबी और भुखमरी दूर करने के लिए ही बनाई जाती हैं। हमारा देश कृषि प्रधान देश कहलाता है इसके बावजूद भारत में ऐसे लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है जिन्हे पेट भर भोजन नसीब नहीं हो रहा है। यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश में गरीबों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है।

साल दर साल भूखों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। लोगों को न तो पेट भर खाना मिल रहा है और न ही पोषण आहार मिल पा रहा है। इसी वजह से बाल मृत्यु दर भी बढ़ती जा रही है। सरकार ने तो गरीबों को भुखमरी से बचाने के लिए रियायती दर पर एक व दो रूपए किलो चावल उपलब्ध कराने की योजना लागू की है अत्यंत गरीबों को चावल नि:शुल्क भी दिया जाता है और भी कई तरह की रियायतें गरीबों को दी जा रही है फिर भी स्थिति सुधरने की जगह बिगड़ती जा रही है तो इसकी वजह सिस्टम में खराबी ही कही जाएगी।

गरीबों के हक को बिचौलिए हड़प जाते है गरीबों के उत्थान के लिए बनी तमाम योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। एक बार तात्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने कहा था कि केन्द्र से गांव के गरीब के लिए चला एक रूपया एसके हाथों तक पहुंचने में पंद्रह पैसे के रूप में तब्दील हो जाता है। एक रूपए में से 85 पैसे बिचौलिए ख जाते है। वर्तमान में भी कमोवेश ऐसी ही स्थिति बनी हुई है यही वजह है कि गरीबों और वंचित वर्ग को आज भी भोजन के लिए तरसना पड़ रहा है। जो भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए शर्म की बात है।

बहरहाल इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अब सरकार को भुखमरी की समस्या का समाधान करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे और गरीबों को भोजन तथा पौष्टिक आहार सहजता से उपलब्ध कराने के लिए वृहद कार्य योजना बनानी होगी, तभी भारत को भूख के अभिशाप से मुक्ति मिल पाएगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस दिशा में यथा शीर्घ उचित पहल करेगी।

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