...जब जीएसटी के दो अफसरों ने अपनी गजलों से राज्योत्सव में बांधा समां |

…जब जीएसटी के दो अफसरों ने अपनी गजलों से राज्योत्सव में बांधा समां

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  • एडीजी इन्वेस्टिगेशन जीएसटी (एमपी-सीजी) व शायर अजय पांडे ‘सहाब’ की लिखीं गजलों को एडिशनल कमिश्नर सीजीएसटी राजेश सिंह ने गाकर दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध
  •  ‘अल्फाज आवाज’ ग्रुप के जरिए देश- विदेश में देते हैं प्रस्तुति

रायपुर/नवप्रदेश। छत्तीसगढ़ राज्योत्सव (rajyotsav) के मंच पर वैसे तो प्रदेश भर के कलाकार अपनी कला का लोहा मनवा रहे हैं। लेकिन शनिवार की शाम जीएसटी के दो (आईआरएस) अफसरों ( two gst officers) ने भी अपनी गजलों (gazals), गीतों व शायरियों से कार्यकम में समां बांध दिया (steal the show)।

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ये अधिकारी हैं- रायपुर में पदस्थ एडीजी इन्वेस्टिगेशन जीएसटी (एमपी-सीजी) अजय पांडे ‘सहाब’ व एडिशनल कमिश्नर सीजीएसटी राजेश सिंह। कार्यक्रम में प्रतिभागियों की लंबी फेहरिस्त के कारण इन अफसरों (two gst officers) के ग्रुप ‘अल्फाज आवाज’ (alfaz awaz) को तीन नगमें पेश करने का ही मौका मिला, लेकिन इतने में भी उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया (steal the show) , गजल व पुराने नगमों की थोड़ी बहुत समझ रखने वाली नई पीढ़ी के मन में इसे जानने केे लिए उत्साह भर दिया।

राजेश सिंह ने अजय सहाब की लिखीं गजलों (gazals) को स्वर दिया, जैसा कि वे अपने ग्रुप के हर कंसर्ट में देते हैं। राजेश सिंह की पहली गजल की पहली पंक्ति- अब वो आंखों की शरारत नहीं होने वाली, अब वो धड़कन की बगावत नहीं होने वाली। तेरी आंखों ने मुझे कैद किया है ऐसे अब मेरी जमानत नहीं होने वाली।… गाते ही राज्योत्सव (rajyotsav) परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। कुछ ऐसा ही नजारा तीसरा व अंतिम गीत गाने के दौरान देखने को मिला। यह गीत था राजा मेहदी अली खान का लिखा- लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो….।

 लग जा गले… के अजय सहाब के बनाए नए वर्जन को गाया

लेकिन राजेश सिंह ने इसकी धुन बरकरार रखते हुए इसका वो वर्जन गाया जिसके तरानों में अजय सहाब ने बदलाव किया है- मुमकिन नहीं है वक्त की रफ्तार रोक ले, कुछ पहल ठहर के प्यार की एक शाम जी तो ले। फिर जिंदगी में आपका ये साथ हो न हो। शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो न हो।…. गौरतलब है कि ‘अल्फाज आवाज’ ग्रुप के माध्यम से दोनों की जोड़ी देश ही नहीं विदेशों में भी अपने कला का लोहा मनवा चुकी है। अजय सहाब की गजलों को पंकज उधास, जगजीत सिंह, अनूप जलोटा, सूदीप बनर्जी जैसे मशहूर गायक भी गा चुके हैं।

दोनों अफसरों की अपने कार्यक्षेत्र से इतर की इस प्रतिभा का राज जानने के लिए नवप्रदेश ने उन्हीं से बातचीत की। जानना चाहा कि आखिर इतने जिम्मेदार पद संभालने के बावजूद  कंसर्ट के लिए उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दोनों ने नवप्रदेश के सवालों का कुछ इस तरह जवाब दिया…

जिसके लिए पैशन हो उसके लिए समय निकल ही जाता है : राजेश

राजेश सिंह ने बताया कि उनके लिए गजल व गाना ही जीवन है। बकोल राजेश, गाने का शौक तो उन्हें बचपन से ही था। स्कूल कॉलेजों में वे अक्सर गाया करते थे। लेकिन आईआरएस अफसर बनने व नौकरी ज्वाइन करने के बाद उन्होंनें बनारस घराने से शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लिया। नौकरी के साथ-साथ गीत-संगीत के लिए समय निकालने में आने वाली चुनौती के बारे में वे कहते हैं कि जिसके लिए पैशन हो उसके लिए समय निकल ही जाता है।

चुनौती को लेकर बताया कोलकाता का वाकया

राजेश सिंह ने कहा कि कभी-कभी दिक्कतें जरूर आती हैं। कोलकाता में नौकरी के दौरान एक बार ऐसा हुआ कि दसरे दिन प्रोग्राम था और देर रात तक मैं ऑफिस के काम में ही उलझा पड़ा था। फिर भी कार्यक्रम में शिरकत की और सबकुछ ठीकठाक रहा। मूलत: उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रारा गांव के निवासी राजेश सिंह ने बताया रायपुर में पोस्टिंग के बाद उनकी मुलाकात अजह सहाब से हुई और 2017 में दोनों ने अपना ग्रुप ‘अल्फाज आवाज’ बनाया।

राजेश की आवाज में सच्चाई, इसलिए उनके साथ बनाया ग्रुप : अजय

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वहीं शायर अजय सहाब ने बताया कि उन्हें बचपन ही उर्दू से खास लगाव था। 10-12 साल की उम्र से ही उन्होंने शायरी लिखनी शुरू कर दी और उन्होंने अपने इस पैशन को कभी नहीं छोड़ा। वे कहते हैं,’राजेश सिंह को उन्होंने एक कार्यक्रम में गाते हुए देखा था। उनकी आवाज में मुझे सच्चाई लगी। उनकी उर्दू की समझ भी काफी अच्छी थी। लिहाजा मैंने उनके साथ ग्रुप बनाने का निर्णय लिया।’

हैदराबाद में हुआ ग्रुप का पहला कंसर्ट

बकौल अजय उनके ग्रुप का पहला कंसर्ट 2017 में हैदराबाद के सादारजंग म्यूजियम में हुआ। उसके बाद ग्रुप ने देश के कई शहरों के अलावा विदेशों में भी परफॉर्म किया। दुबई, लंदन में अल्फाज आवाज (alfaz awaz) के कार्यक्रम हो चुके हैं और जर्मनी, जॉर्डन से भी ऑफर हैं। अजय सहाब भी कहते हैं कि नौकरी करते हुए इन कार्यक्रमों के लिए समय निकाल पाना कठिन होता है, छुट्टी मिलती है तो ही वे परफॉर्म करने जा पाते हैं। अजय सहाब छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के ही रहने वाले हैं और छत्तीसगढ़ी भी अच्छी बोल लेते हैं।

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