• तिरुपति बालाजी मंदिर में, छत्तीसगढ़ के हथकरघा व हस्तशिल्प उत्पादों की लगी प्रदर्शनी

रायपुर । देश के बाकी हिस्सों के अलावा, साउथ के लोगों ने भी छत्तीसगढ़ के कोसा सिल्क को हाँथों-हाथ लिया है। आँध्रप्रदेश के तिरुमला स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर और दिल्ली तथा देश के अन्य शहरों में स्थित उसके केंद्रों में 11 दिन का ब्रह्मोत्सव बुधवार दिनांक 15 मई से शुरू हुआ जो की 25 मई तक चलेगा।
दिल्ली के तिरुपति बालाजी मंदिर में छत्तीसगढ़ के हस्तशिल्प और हाथकरघा उत्पादों की प्रर्दशनी भी लगाई गई है, जो की यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है। 1.2 एकड़ में फैला भगवान तिरुपति बालाजी का दिल्ली मंदिर, बिरला मंदिर के पास नई दिल्ली के केंद्र में स्थित है। यह तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टी.टी.डी) के तत्वाधान में है और आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति में स्थित मंदिर की प्रति कृति है।
यहाँ आई श्रद्धालु श्रीमती अनंदिता ने बताया कि, छत्तीसगढ़ के कोसा सिल्क की साड़ी वह अपनी बेटी को उसकी शादी में उसे गिफ्ट करेंगीं। जून में मेरी बेटी की शादी है, छत्तीसगढ़ का सिल्क और उसकी डिजाइन अपने में कुछ खास ही है। उनकी ही मित्र आरती ने कहा कि छत्तीसगढ़ के कोसा सिल्क का कपड़ा नेचुरल डाई से बना है, इस प्रकार का सिल्क देश के दूसरे राज्यों में नहीं बनता है। उल्लेखनीय है कि यहाँ लगाई गई छत्तीसगढ़ के हाथकरघा और हस्तशिल्प प्रदर्शनी में सिल्क के कपड़े प्राकतिक रंग से तैयार किए गये है। जैसे पीला रंग गेंदे के फूल से बनाया गया है। काला रंग मशरूम और प्याज के रंग से तैयार किया गया है। इस प्रकार कोसे के कपड़े जो थान में यहाँ उपलब्ध है उन पर वेजीटेबल कलर से उन्हें कलर किया गया है, जो कि यहाँ आने वाले लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बना है।
तिरुपति मंदिर में ही आए होटल व्यवसायी श्री अशोक ने कहा कि, छत्तीसगढ़ के ढोकरा आर्ट को वे अपने होटल को सजाने के लिए लेंगे। उल्लेखनीय है कि ब्रह्मोत्सव, तिरुमला में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है क्योंकि इसमें ब्रह्मा द्वारा भगवान श्रीनिवास के प्रकट होने के दिन को दर्शाया गया है। वार्षिक ब्रह्मोत्सव दिल्ली मंदिर में उसी उत्साह के साथ आयोजित किया जाता है जैसा कि तिरुमला में किया जाता है।
त्यौहार के दौरान, पीठासीन देवता भगवान वेंकटेश्वर (तिरुपति बालाजी) की उत्सव-मूर्ति (जुलूस देवता), उनकी पत्नी पद्मावती अम्मावारू (महालक्ष्मी माँ) और अंडालअम्मवारु (धरती माँ) के साथ विभिन्न वाहनों पर मंदिर परिसर के आसपास की सड़को पर जुलूस निकाला जाता है।